देवीची आरती अम्बे तू है जगदम्बे काली

 अम्बे तू है जगदम्बे काली। जय दुर्गे खप्पर वाली । तेरे ही गुण गाये भारती, ओ मैया हम सब उतरें, तेरी आरती ॥ तेरे भक्त जनो पर, भीर पडी है भारी माँ । दानव दल पर टूट पडो, माँ करके सिंह सवारी । सौ-सौ सिंहो से बलशाली, अष्ट भुजाओ वाली, दुष्टो को पलमे संहारती । ओ मैया हम सब उतरें, तेरी आरती ॥ अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली । तेरे ही गुण गाये भारती, ओ मैया हम सब उतरें, तेरी आरती ॥ माँ बेटे का है इस जग मे, बडा ही निर्मल नाता । पूत - कपूत सुने है पर न, माता सुनी कुमाता ॥ सब पे करूणा दरसाने वाली, अमृत बरसाने वाली, दुखियो के दुखडे निवारती । ओ मैया हम सब उतरें, तेरी आरती ॥ अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली । तेरे ही गुण गाये भारती, ओ मैया हम सब उतरें, तेरी आरती ॥ नही मांगते धन और दौलत, न चांदी न सोना माँ । हम तो मांगे माँ तेरे मन मे, इक छोटा सा कोना ॥ सबकी बिगडी बनाने वाली, लाज बचाने वाली, सतियो के सत को सवांरती । ओ मैया हम सब उतरें, तेरी आरती ॥ अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली । तेरे ही गुण गाये भारती, ओ मैया हम सब ...

हनुमान अष्टक

                       !!हनुमान अष्टक!!


बाल समय रवि भक्षि लियो, तब तीनहुं लोक भयो अंधियारो।

ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो।।

देवन आनि करी विनती तब, छांंिड़ दियो रवि कष्ट निवारो।

को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।।

बालि की त्रास कपीस बसै गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारौ।

चौंकि महामुनि शाप दियो तब, चाहिए कौन विचार विचारो।।

कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के शोक निवारो।

को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।।

अंगद के संग लेन गये सिय, खोज कपीस ये बैन उचारो।

जीवत ना बचिहों हमसों, जु बिना सुधि लाये यहां पगुधारो।।

हेरि थके तट सिन्धु सबै तब, लाय सिया, सुधि प्राण उबारो।

को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।।

रावन त्रास दई सिय की, सब राक्षसि सों कहि शोक निवारो।

ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो।।

चाहत सीय अशोक सों आगि, सो दे प्रभु मुद्रिका शोक निवारो।

को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।।

बान लग्यो उर लछिमन के तब, प्रान तजे सुत रावन मारो।

ले गृह वैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सुबीर उपारो।।

आन संजीवन हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो।

को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।।

रावन युद्ध अजान कियो तब, नाग की फाँस सबै सिर डारौ।

श्री रघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयौ यह संकट भारो।।

आनि खगेश तबै हनुमान जी, बन्धन काटि सो त्रास निवारो।

को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।।

बंधु समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो।

देविहिं पूजि भली विधि सों, बलि देहुं सबै मिलि मंत्र विचारो।।

जाय सहाय भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो।

को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।।

काज किये बड़ देवन के तुम, वीर महाप्रभु देखि विचारो।

कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसौं नहिं जात है टारो।।

बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कुछ संकट होय हमारो।

को नहिं जानत है जग में, कपि संकटमोचन नाम तिहारो।।

          श्री हनुमान अष्टक दोहा

लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
वज्र देह दनव दलन, जय जय जय कपि सूर।।

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